वटसावित्री पूजा हिन्दू धर्म की एक प्रमुख और पवित्र परंपरा है, जिसे विशेष रूप से सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि के लिए करती हैं। यह व्रत ज्येष्ठ मास की अमावस्या को मनाया जाता है, और इसका सीधा संबंध सावित्री-सत्यवान की पौराणिक कथा से है, जिसमें सावित्री ने यमराज से अपने पति सत्यवान के प्राण वापस ले लिए थे।
वटसावित्री व्रत का महत्व
वटसावित्री व्रत न केवल एक धार्मिक परंपरा है, बल्कि यह भारतीय स्त्रियों के संस्कार, श्रद्धा, और पति के प्रति समर्पण का प्रतीक भी है। व्रत के दिन महिलाएं नए वस्त्र और सुहाग का श्रृंगार करती हैं और वट (बरगद) वृक्ष की पूजा करती हैं। बरगद के पेड़ को जीवन, स्थिरता और लंबी उम्र का प्रतीक माना गया है।
पूजा विधि
- स्नान और संकल्प: सुबह स्नान कर व्रत का संकल्प लें।
- व्रत कथा सुनना: पूजा के समय सावित्री और सत्यवान की कथा का पाठ करें या सुनें।
- वट वृक्ष की पूजा: वट वृक्ष को जल अर्पण करें, कच्चा सूत (धागा) पेड़ पर लपेटें और दीपक, अगरबत्ती, रोली, अक्षत, फूल, फल आदि अर्पित करें।
- सावित्री का पूजन: मिट्टी या धातु की सावित्री की मूर्ति की पूजा करें।
- भोजन और पारण: व्रत रखने के बाद अगले दिन पारण कर फलाहार या भोजन करें।
सावित्री और सत्यवान की कथा
सावित्री, राजा अश्वपति की पुत्री थीं, जिन्होंने तप और भक्ति से पति के रूप में सत्यवान को प्राप्त किया। जब यमराज सत्यवान के प्राण लेने आए, तो सावित्री ने अपने बुद्धि, तप और व्रत की शक्ति से यमराज को विवश कर दिया कि वे उसके पति को पुनः जीवन दें। यह कथा नारी शक्ति और दृढ़ संकल्प की मिसाल मानी जाती है।
आधुनिक संदर्भ में वटसावित्री व्रत
आज के दौर में भी वटसावित्री व्रत का महत्व कम नहीं हुआ है। शहरी और ग्रामीण सभी क्षेत्रों की महिलाएं इस दिन विशेष भक्ति और आस्था के साथ पूजा करती हैं। यह पर्व न केवल एक धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि यह भारतीय स्त्री के संस्कृति, प्रेम और आत्मबल की जीवंत अभिव्यक्ति है।
निष्कर्ष
वटसावित्री पूजा भारतीय संस्कृति में नारी शक्ति और वैवाहिक जीवन की पवित्रता को सम्मान देने वाला पर्व है। यह दिन हर स्त्री को अपनी आस्था के माध्यम से अपने परिवार और पति की खुशहाली के लिए जुड़ने का अवसर देता है। यह न केवल धार्मिक, बल्कि एक सांस्कृतिक उत्सव भी है जो पीढ़ियों से भारतीय परंपरा में जीवित है।
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