नई दिल्ली, 30 मई 2025 — कांग्रेस नेता और पूर्व क्रिकेटर नवजोत सिंह सिद्धू एक बार फिर अपने विवादित बयान को लेकर चर्चाओं में हैं। इस बार उन्होंने भारतीय फिल्म इंडस्ट्री, यानी बॉलीवुड, पर सीधा निशाना साधा है। सिद्धू ने हाल ही में एक सार्वजनिक कार्यक्रम में कहा,
“बॉलीवुड अब भारतीय संस्कृति का आइना नहीं है, बल्कि यह पश्चिमी सोच, अश्लीलता और दिखावे का केंद्र बन गया है।”
उनके अनुसार, भारतीय सिनेमा पहले जहां समाज को दिशा देने का कार्य करता था, वहीं आज फिल्मों में नैतिकता, पारिवारिक मूल्य और सामाजिक जिम्मेदारी का अभाव है। उन्होंने कहा,
“आज की फिल्मों में ड्रग्स, हिंसा और कामुकता का दिखावा ज़्यादा है, जबकि भारतीय संस्कृति संयम, सम्मान और त्याग पर आधारित रही है।”
🎬 बॉलीवुड की प्रतिक्रिया: “यह एकतरफा दृष्टिकोण है”
सिद्धू के इस बयान पर बॉलीवुड से तीखी प्रतिक्रियाएं आई हैं। कई कलाकारों और निर्देशकों ने इसे ‘पूर्वाग्रही’ और ‘आंशिक सच’ करार दिया।
अभिनेत्री तापसी पन्नू ने कहा,
“हर फिल्म को एक ही चश्मे से देखना गलत है। सिनेमा समाज का प्रतिबिंब है और हर दौर में समाज के विविध पक्षों को दिखाया गया है।”
निर्देशक अनुभव सिन्हा ने भी अपनी नाराजगी जताते हुए ट्वीट किया,
“अगर आप कुछ फिल्मों को लेकर असहमत हैं, तो उनका नाम लीजिए। पूरी इंडस्ट्री को बदनाम करना कहां की समझदारी है?”
फिल्म समीक्षक अनुपमा चोपड़ा ने अपने यूट्यूब चैनल पर कहा,
“बॉलीवुड में आज भी ऐसी फिल्में बन रही हैं जो सामाजिक बदलाव को प्रेरित करती हैं। उदाहरण के लिए ‘12th फेल’, ‘जॉन डे’, ‘शेरनी’ जैसी फिल्में भारतीय जड़ों से जुड़ी हैं।”
📱 सोशल मीडिया पर जनता बंटी दो खेमों में
सिद्धू के बयान ने ट्विटर, इंस्टाग्राम और फेसबुक पर बहस को जन्म दे दिया है।
- एक वर्ग उनका समर्थन करते हुए कह रहा है कि फिल्में अब भारतीय बच्चों और युवाओं पर गलत असर डाल रही हैं।
- वहीं दूसरा वर्ग सिद्धू की आलोचना करते हुए कह रहा है कि “एक जननेता को इतना व्यापक और जिम्मेदार दृष्टिकोण रखना चाहिए।”
एक यूज़र ने लिखा, “सिद्धू जी को पुराने जमाने की फिल्मों से ही प्यार है, लेकिन समय बदला है और सिनेमा भी। आज की फिल्मों में विविधता है।”
वहीं एक अन्य यूज़र ने लिखा, “उनकी बातों में सच्चाई है। हर दूसरी फिल्म में गालियां, शराब और अपराध दिखाना मनोरंजन नहीं है।”
✍️ हमारा विश्लेषण: क्या सिद्धू की चिंता जायज़ है?
नवजोत सिंह सिद्धू का यह कहना कि बॉलीवुड भारतीय संस्कृति को विकृत कर रहा है, एक बहुत बड़ा जनरलाइजेशन है। भारतीय सिनेमा विविधताओं से भरा हुआ है — इसमें एक तरफ ‘केजीएफ’, ‘पुष्पा’ जैसी एक्शन ड्रिवन फिल्में हैं, तो दूसरी तरफ ‘द केरला स्टोरी’, ‘छिछोरे’, ‘नीरजा’, और ‘मसान’ जैसी संवेदनशील और सामाजिक मुद्दों पर बनी फिल्में भी हैं।
हर युग में सिनेमा ने अपने समय के अनुसार खुद को ढाला है। 1970 के दशक में जहां ‘जंजीर’ और ‘शोले’ जैसी मसाला फिल्में थीं, वहीं ‘सत्यजीत रे’ और ‘मृणाल सेन’ जैसे फिल्मकारों ने समानांतर सिनेमा की नींव रखी।
आज के समय में भी ऐसे फिल्ममेकर हैं जो सामाजिक बदलाव, महिला सशक्तिकरण, शिक्षा, स्वास्थ्य, और जातीय भेदभाव जैसे मुद्दों पर फिल्में बना रहे हैं। OTT प्लेटफॉर्म्स ने इस विविधता को और विस्तार दिया है।
📢 समाज की भूमिका और फिल्मों का प्रभाव
यह बात नकारा नहीं जा सकता कि सिनेमा का समाज पर असर पड़ता है। लेकिन इसके लिए केवल फिल्म इंडस्ट्री को दोष देना सही नहीं है। सिनेमा एक व्यापक दर्शक वर्ग के लिए बनाया जाता है, और इसकी दिशा दर्शकों की मांग और रुचि से भी तय होती है।
अगर समाज में नैतिकता, संस्कार और शिक्षा का स्तर ऊंचा होगा, तो कंटेंट अपने आप बदल जाएगा। समाज और सिनेमा, दोनों एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं।
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